Nine Day Ritual on Upanishads at Parmarth Niketan

परमार्थ निकेतन गंगा तट पर उपनिषद्, भगवत गीता:ध्यान योग‘ पर नौ दिवसीय अनुष्ठान हो रहा है, जिसमें सहभाग हेतु दक्षिण भारत से हजारों की संख्या में साधक परमार्थ निकेतन पधारे। सभी साधक भक्ति भाव से ज्ञान गंगा और दिव्य गंगा में स्नान कर रहे हैं। वेदांत संप्रदाय के आचार्य श्री रमणचरनतीर्थ नोचूर वेंकटरमण जी के नेतृत्व में अनुष्ठान सम्पन्न हो रहा है।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी ने नौ दिवसीय अनुष्ठान में आये साधकों को सम्बोधित किया तथा वेदान्त से संबंधित विषयों पर जिज्ञासाओं का समाधान किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने दक्षिण भारत से गंगा तट पर आकर साधना कर रहे साधकों का अभिनन्दन करते हुये कहा कि परमार्थ निकेतन में दक्षिण और उत्तर का अद्भुत संगम दिखायी दे रहा हैं। यह अद्भुत और अलौकिक दृश्य हैं। स्वामी जी ने कहा कि प्रतिवर्ष यहां पर सभी साधक आयें और इस पवित्र वातावरण का आनन्द लें ताकि हम सब एक परिवार हैं ; एक है इसका दर्शन सदैव होता रहे तथा संगच्छध्वं संवदध्वं के मंत्र के साथ आगे बढ़ते रहे।

स्वामी जी ने कहा कि यह भगवान नीलकंठ की धरती है, प्रभु श्री राम और लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की धरती हैं, जिन्होंने यहां आकर साधना की। यह धरती साधना, उपासना और आराधना की धरती है, चिंतन, मनन और मंथन की धरती है इसलिये उत्तराखंड में तीर्थाटन की दृष्टि से आयें क्योंकि तीर्थ भाव से बाहर का आनन्द नहीं बल्कि भीतर का आनन्द भी प्राप्त होता है।

स्वामी जी ने कहा कि वेदांत दर्शन उपनिषद् पर आधारित है जिसके माध्यम से आप सभी ब्रह्म की अवधारणा को समझ पायेंगे क्योंकि यही उपनिषद् का केंद्रीय तत्त्व है। स्वामी जी ने कहा कि वेद ज्ञान के परम स्रोत हंै। वेदांत में संसार से मुक्ति के लिये त्याग के स्थान पर ज्ञान के पथ की व्याख्या की गयी है और बताया गया है कि ज्ञान का अंतिम उद्देश्य संसार से मुक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति है।

साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि मैं अमरीका से इस धरती पर आयी और यहीं की होकर रह गयी क्योंकि यहां पर एक आकर्षण है और वह है आध्यात्मिक आकर्षण, दिव्यता, पवित्रता और सात्विकता का आकर्षण जो आने वालों को बांध लेता है। इस धरती ने केवल मुझे ही नहीं बल्कि विश्व से आने वालों को भी अपनी ओर आकर्षित किया हैं और सब को मोह लिया है, इसलिये बार-बार ऋषिकेश, उत्तराखंड आने का मन करता है। आप सब यहां से गंगा सी पवित्रता और शीतलता अपने साथ लेकर जायें।

आचार्य श्री रमणचरनतीर्थ नोचूर वेंकटरमण जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन आकर वेदान्त पर चर्चा, पूज्य स्वामी जी के पावन सान्निध्य में गंगा जी की दिव्य आरती, साध्वी जी का सत्संग, प्रतिदिन यज्ञ, ज्ञान यज्ञ, गीता यज्ञ, उपनिषद् यज्ञ में सहभाग करना आपने आप में दिव्य है। इस तट पर भक्ति, ज्ञान और सकारात्मक कर्म का अद्भुत संगम है। यहां पर भक्ति, ज्ञान और कर्म का अद्भुत संगम है। यह तट साधना के लिये अत्यंत उत्तम है, जो भी यहां आता हैं, यहां का हो जाता हैं। यहां आकर नौ दिन भी कम लगने लगे हैं सभी साधकों की इच्छा है कि इस पवित्र वातावरण में और अधिक समय तक रहा जाये। आने वाले वर्ष वेदान्त चर्चा हेतु अधिक समय लेकर जरूर आयेंगे।

नोचूर वेंकटरमण जी ने कहा कि पूज्य स्वामी जी जहां भी गये चाहे वह देश, विदेश, उत्तर, दक्षिण, पर्व, पश्चिम उन्होंने सभी संस्कृतियों को एक दिव्य मंच प्रदान किया। हमने प्रयाग राज कुम्भ में देखा दक्षिण अफ्रीकी देशों की कीवा संस्कृति से स्वामी जी ने सभी को परिचित कराया। स्वामी वैश्विक स्तर पर वसुधैव कुटुम्बकम् का मंत्र लेकर कार्य करते हैं, सभी को एक परिवार, वननेस के मंत्र का संदेश देते हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आचार्य नोचूर वेंकटरमण जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट करते हुये कहा कि इसी प्रकार ऋषिकेश, उत्तराखंड आने का आकर्षण बना रहे इससे संस्कृतियों को मिलन होता है, संस्कार मिलते है, प्यार बढ़ता है, रोजगार बढ़ता है; व्यापार बढ़ता है। स्वामी जी ने सभी साधकों को पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण संकल्प कराया।