International Mother Tongue Day

ऋषिकेश, 21 फरवरी। अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ‘‘माँ, मातृभूमि और मातृभाषा ये तीनों ही संस्कारों की जननी हैं।’’ मातृभाषा हमें अपने मूल और मूल्यों से जोड़ती है। माँ से जन्म, मातृभूमि से हमारी राष्ट्रीयता और मातृभाषा से हमारी पहचान होेती है इसलिये जरूरी है कि हम कम से कम अपने घर-परिवार में अपनी मातृभाषा में ही वार्तालाप करें ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी भाषा के माध्यम से अपनी संस्कृति, संस्कार और मूल को जान सकंे।

भारत की संस्कृति विविधता में एकता, बहुभाषा एवं भाषायी सांस्कृतिक विविधता की हैं और यही भारत की अनमोल, अद्भुत और अलौकिक संपदा भी हैं परन्तु लुप्त होती भाषायें चिंतन का विषय हैं। अगर भाषायें विलुप्त होती रही तो संस्कृति भी विलुप्त होने की कगार पर आ जायेगी इसलिये क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वदेशी भाषाओं का संरक्षण, समर्थन और उन्हें बढ़ावा देना नितांत आवश्यक हैं।

स्वामी जी ने कहा कि स्थानीय भाषाओं के संरक्षण के लिये अपनी भाषा को बोलने और उसे दिल से स्वीकारने की जरूरत है। अपनी भाषा, लिपि और अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए रखना हम सभी का परम कर्तव्य हैं। हमें कम से कम पारिवारिक स्तर पर एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा जहां अपनी मातृभाषा के स्थान पर किसी दूसरी भाषा को स्थापित करने की जरूरत न पड़े।

छोटे बच्चों से बचपन से ही अपनी मातृभाषा में वार्तालाप करने से वे सहजता से भाषा को सीख सकते हैं। भाषा की सहजता से बच्चों की रचनात्मकता में भी वृद्धि होगी साथ ही अपनी भाषा में विचारों की अभिव्यक्ति भी सरलता से की जा सकती हैं। किसी व्यक्ति की मातृभाषा उस व्यक्ति की पहचान को भी दर्शाती है।

मातृभाषा को बढ़ावा देने, भाषायी अंतर से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता – अखंडता की भावना का निर्माण करने हेतु प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।