World Social Justice Day

ऋषिकेश, 20 फरवरी। आज के दिन को पूरे विश्व में ‘विश्व सामाजिक न्याय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना तथा गरीबी, लैंगिक असमानता, बेरोजगारी को दूर कर मानव अधिकार, सामाजिक सुरक्षा और सतत विकास को बढ़ावा देना। सामाजिक न्याय से तात्पर्य है कि सभी राष्ट्रों को शांतिपूर्ण सह.अस्तित्व और सतत विकास के लिये प्रकृति अनुकूल आवश्यक सूत्रों का पालन करना।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हिन्दू धर्म में न्याय दर्शन की अत्यन्त प्राचीन परम्परा रही है। वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन (छः दर्शन) अत्यधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं। ये छः दर्शन हैं- न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त। इन षडदर्शनों को ‘आस्तिक दर्शन’ भी कहा जाता हैं। न्याय-दर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम हैं जिनके ग्रंथ ‘न्यायसूत्र’ में न्याय के दार्शनिक सिद्धान्त समाहित हैं। इस दर्शन में पदार्थों के तत्वज्ञान से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन है। पदार्थों के तत्वज्ञान से मिथ्या ज्ञान की निवृत्ति होती है जैसे अशुभ कर्मो में प्रवृत्त न होना, मोह से मुक्ति, दःुखों से निवृत्ति तथा दूसरों को दुःख न देना आदि सम्मलित है। इस दर्शन के अनुसार परमात्मा को सृष्टिकर्ता के रूप में स्वीकार किया गया है अतः सृष्टि पर रहने वाले सभी जीवों के साथ समानता युक्त व्यवहार करना अत्यंत आवश्यक है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जब हम न्याय तथा सामाजिक न्याय की बात करते हैं तो वह केवल मानव या प्राणियों तक सीमित नहीं है बल्कि उसमें सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड समाहित है इसलिये न्याय की अवधारणा भी सार्वभौमिक होनी चाहिये। सबके हित के लिये समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अतंदृष्टि और चेतना को जाग्रत करना होगा। उन्होंने कहा कि दया, करूणा और प्रेम जीवन के वह पिलर है जिसके माध्यम से वास्तिविक न्याय की स्थापना की जा सकती है।

धरती पर रहने वाले हर प्राणी को स्वतंत्रता और भय से मुक्त वातावरण चाहिए इसलिये ऐसा वातावरण दूसरों के लिये भी निर्मित करने की जरूरत है क्योंकि हमारा पूरा समाज समावेशी, अन्योन्याश्रित और सार्वभौमिक हितों के लिये जुड़ा़़ हुआ है।

सभी को मिलकर प्रयत्न करना होगा कि 21 वीं सदी में समाज का कोई भी व्यक्ति अपने न्याय के अधिकार से वंचित न रहे। न्याय से वंचित होना अर्थात अन्याय का सामना करना, ऐसे में लोगों को गरीबी, सामाजिक असुरक्षा और असमानता का सामना करना पड़ता है। यह जरूरी है कि किसी के भी अधिकारों का हनन न हो क्योंकि न्याय के अभाव में मानवता को अनावश्यक समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसलिए जरूरी है कि समाज में मानवीय मूल्यों को बनायें रखा जाये।

स्वामी जी ने कहा कि सभी को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा। अधिकारों के साथ ही कर्तव्यों का पालन करने की भी आवश्यकता है और इसके लिये प्रत्येक व्यक्ति की चेतना को जाग्रत करना नितांत आवश्यक है। चेतना के जाग्रत होने से न केवल अपने अधिकारों की जानकारी होगी बल्कि कर्तव्य पालन का भी बोध होगा इससे समाज में व्याप्त हिंसा, शोषण और अन्याय को भी कम किया जा सकता है इसलिये आईये न्यायपूर्ण व्यवहार के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें व अपने पर्यावरण, प्रकृति और नदियों के प्रति भी न्यायपूर्ण व्यवहार करें।