पूर्व केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री श्री सत्यपाल सिंह आये परमार्थ निकेतन

पूर्व केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री, सासंद और गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री सत्यपाल सिंह जी सपरिवार परमार्थ निकेतन आये। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर विभिन्न समसामयिक विषयों पर चर्चा की।

स्वामी जी ने माननीय सांसद श्री सत्यपाल सिंह जी से कहा कि अब समय आ गया है कि विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ने के लिये प्रेरित करना अत्यंत आवश्यक है।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने जीरो वेस्ट हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस जो कि पहली बार 30 मार्च को मनाया जाता है का जिक्र करते हुये कहा कि अपशिष्ट मुक्त शहर बनाने के लिये पहले अपशिष्ट मुक्त घर बनाने पर विशेष ध्यान देना होगा और इस हेतु बच्चों को प्रशिक्षित किया जाये तो व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से सामाजिक बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जीरो-वेस्ट पहल के लिये प्रत्येक व्यक्ति, विद्यालय, घरों, संगठनों और संस्थाओं को आगे आना होगा।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जीरो वेस्ट पहल के लिये संसाधनों का यथासंभव पुनः उपयोग किया जाये तो हम वायु, भूमि या जल के प्रदूषण को कम कर सकते हैं। शून्य अपशिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यवहार परिवर्तन के साथ सभी स्तरों पर कार्रवाई की आवश्यकता है। अपनी आदतों में बदलाव करके और उत्पादों को ठीक से निपटाने से पहले जितना संभव हो सके उनका पुनः उपयोग और मरम्मत करके शून्य अपशिष्ट के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

स्वामी जी ने कहा कि जीरो वेस्ट के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सभी को मिलकर सतत और सुरक्षित रास्तों की तलाश करनी होगी तथा संसाधनों के उत्तरदायित्वपूर्ण उपभोग एवं प्रबंधन को सुनिश्चित करना होगा ताकि कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके। साथ ही उपयोग में लाये जा रहे उत्पादों के स्थायित्व, पुनःउपयोग और पुनर्चक्रण पर विशेष ध्यान देना होगा। यथा संभव हर चीज का पुनःउपयोग, पुनर्निर्माण एवं पुनर्चक्रण किया जा सकता है।

स्वामी जी ने कहा कि भारत में हमेशा से पुनर्चक्रण एवं पुनःउपयोग की संस्कृति रही है इस संस्कृति को पुनः विकसित करने की जरूरत है। मानवता के विकास हेतु मानवीय मूल्यों का होना बहुत जरूरी है। मानवीय मूल्यों की बात की जाए तो ऐसे मूल्य जो मानव जीवन के स्वभाविक एवं सुव्यवस्थित संचालन के लिये आवश्यक हैं।

दैनिक जीवन में हम जाने-अनजाने में ऐसे विभिन्न कार्यकलाप करते हैं जिससे प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान होता है इसलिये अब व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है, इसमें शिक्षण संस्थायें महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकती है।

गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री सत्यपाल सिंह जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन एक ऐसी पाठशाला है जहां से पूरे विश्व से आने वाले पर्यटकों को भारतीय संस्कृति, संस्कार, पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के साथ मानवतापूर्ण व्यवहार करने की शिक्षा प्रतिदिन गंगा आरती के माध्यम से प्रदान की जाती है। वास्तव में भारत को ऐसे उत्कृष्ट संस्थानों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन की दिव्यता, सुन्दरता और हरियाली अत्यंत ही मनमोहक है। यहां से परमार्थ गुरूकुल और गंगा आरती के माध्यम से पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और संस्कारों का जो प्रसार-प्रचार हो रहा है वह अनुकरणीय है। स्वामी जी के द्वारा वेद के अध्ययन पर जो कार्य किया जा रहा है उसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हुये कहा कि जब भी यहां पर आते है यहां से जाने का मन ही नहीं करता वास्तव में यह स्थान अत्यंत रमणीय है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी ने माननीय संासद श्री सत्यपाल सिंह जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।