परमार्थ निकेतन में श्रीमद्भागवत कथा का समापन

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज मातृ दिवस के अवसर पर भारत की मातृशक्ति को शुभकामनायें देते हुये कहा कि ‘‘माँ, मातृभूमि और मातृभाषा ये तीनों ही संस्कारों की जननी है।’’ मातृभाषा अर्थात् जिस भाषा में हम सबसे पहले बोलना सीखते हंै वही हमारी मातृभाषा होती है यानी माँ की गोद की भाषा जो हमें अपने मूल और मूल्यों; जड़ों और संस्कृति से जोड़ती है। माँ से जन्म, मातृभूमि से हमारी राष्ट्रीयता और मातृभाषा से हमारी पहचान होेती है।

स्वामी जी ने कहा कि आज मातृ दिवस के अवसर पर हम सभी को अपनी धरती माता प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प लेना होगा। हमें अपने व्यवहार, चिंतन और कार्यशैली में बदलाव कर पौधारोपण और सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने की अलख जगानी होगी। स्वामी जी ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व बदलाव की लहर चल पड़ी है जो दूर तक जाएगी बस हमें अपने स्तर पर सहयोग प्रदान करना है।

आज श्रीमद् भागवत कथा की पूर्णहुति के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने उद्धव को संदेश दिया कि नारायण स्मृति बनाये रखना और सुदामा को कहा कि आपको जो सम्पति दी गयी है उसका सद्पयोग करना। यही मार्ग है कि विकास तो हो पर अपनी विरासत के साथ हो। धन भी कमाओं पर धर्म भी संरक्षित रहे। जीवन में विकास और विरासत, धन और धर्म का संगम हो तथा कर्म और धर्म का जोड़ सभी के जीवन में सदैव प्रवाहित रहे। हम सभी के दिलों में देवभक्ति के साथ देशभक्ति; राष्ट्रभक्ति का प्रवाह और संस्कारों की गंगा सदैव प्रवाहित होता रहे।

श्रीमद् भागवत कथा के कथाव्यास श्री मृदृल कृष्ण गोस्वामी जी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में पांच माताओं का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। प्रथम माँ जन्म देने वाली माता क्योंकि उसी माता की कृपा से हमें जन्म मिला है, दूसरी माता पृथ्वी है, पृथ्वी माता जीवन दायिनी है। तीसरी माता भारत माता जिससे हमारी पहचान है, भारत माता ने ही हमें धर्म दिया है और उसे धारण करना भी सीखाती है। चैथी माता है गौ माता जो मोक्ष दायिनी है और पांचवी माता है गंगा माता, जो त्रिपथगा है, जो पापों का नाश करने वाली है। उन्होंने कहा कि हमारे हृदय में अपनी इन पांचों माताओं के प्रति श्रद्धा का भाव हो तभी हमारा मातृ दिवस मनाना सार्थक होगा।

आयोजक परिवार श्री विशाल सिंह जी, उर्मिला जी, सुपुत्र श्री विकास और समस्त तंवर परिवार ने भक्तिभाव से सात दिनों तक माँ गंगा के पावन तट पर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण किया।