अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की छः दिवसीय कार्यशाला का समापन

The six-day workshop of the Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP) concluded today in the auspicious presence of HH Param Pujya Swami Chidanand Saraswatiji, as the office bearers of the ABVP and organizations of various states took a pledge to protect Mother Earth on World Earth Day.


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व पृथ्वी दिवस, परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर शुभकामनायें देते हुये कहा कि धरती बचेगी तो धर्म बचेगा, अर्थ है तो वर्थ है; अर्थ है तो बर्थ है इसलिये आईये मिलकर अपनी धरती माँ को बचाने का संकल्प लें।

स्वामी जी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर कहा कि हर चीज का प्लान ए और प्लान बी हो सकता है लेकिन पृथ्वी का कोई प्लान बी नहीं है केवल एक ही तो पृथ्वी है। कोई दूसरी पृथ्वी नहीं है हमारे पास कि उसके लिये कोई प्लान बी या प्लानेट बी हो सके। पृथ्वी तो एक है इसलिये हम सभी को मिलकर कार्य करना होगा और यह समय मिलकर काम करने का है। हम अपनी पृथ्वी पर करूणा करे क्योकि प्रकृति बचेगी, पृथ्वी बचेगी तो आने वाली संतति और संसार बचेगा। पृथ्वी अब तक हमारे लिये सब कुछ सहती रही है अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर अपनी पृथ्वी के लिये कुछ करें क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड में केवल पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है।

स्वामी जी ने कहा कि पृथ्वी ईश्वर प्रदत्त उपहार है पृथ्वी को हमारी आवश्यकता नहीं है परन्तु हमें पृथ्वी की जरूरत है, हमारे जीवन की कल्पना पृथ्वी के बिना असम्भव है।

स्वामी जी ने कहा कि ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’, ’धरती हमारी माता है और हम सब उनकी संतानें हैं‘। आज का दिन अपनी धरती माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का है क्योंकि धरती है तो हम हैं और हमारा अस्तित्व है, ‘धरती नहीं तो जीवन नहीं’ ’अर्थ है तो बर्थ है’ अर्थ तो वर्थ है इसलिये आईये पृथ्वी के पैरोकार, प्रहरी और पहरेदार बनें।

स्वामी जी ने कहा कि आज अद्भुत संयोग है क्योंकि आज अक्षय तृतीया अर्थात स्वयंसिद्ध मुहूर्त, अक्षय फल देने वाली तिथि भी है, इस दिन किए गए कार्यों का कभी भी क्षय नहीं होता, वे अक्षय होते हैं। भारतीय संस्कृति बहुत ही अद्भुत है, अलौकिक है, अद्वितिय है और हम सचमुच बड़े ही भाग्यशाली है कि हमें इस दिव्य संस्कृति में जन्म लेने का अवसर मिला हुआ है। भारतीय संस्कृति जीवन को यज्ञ बनाने की कला है। भारत अर्थात प्रकाश, ऊर्जा, उमंग, उत्साह, संस्कृति और संस्कारों से युक्त राष्ट्र। यहां पर प्रतिदिन एक नये सूर्य उदय के साथ ही एक नये पर्व की शुरूआत होती हैं, जो हमें खुशियों से भर देता हैं और अक्षय तृतीया को किये गये कर्मों का कभी क्षय नहीं होता, वे अक्षय होते हैं। इस दिन सोना खरीदने का भी उल्लेख मिलता है परन्तु वास्तव में हमारी धरती ही हमारा सोना है और धरती के गर्भ में ही सोना है इसलिये आईये अपनी धरती माता को बचाने के लिये मिलकर प्रयास करें, पौधों का रोपण करें, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करें, और पारम्परिक प्रकृति के अनुकूल जीवन शैली अपनाये ताकि हमारा प्रत्येक कर्म और उसका परिणाम अक्षय हो।

श्री सुरेश सोनी जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा आरती केवल अनुभव करने का और आत्मसात करने का प्रसंग है, शब्दों का नहीं है। गंगा हमारे सांसारिक और आध्यात्मिक धारा का प्रवाह है। गंगा की स्वर्णीम ऊर्जा की रश्मियाँ हम सभी के जीवन में आये। गंगा माँ की प्रेरणा हम सभी के जीवन में प्रवेश करें यही माँ गंगा का संदेश है। गंगा स्वर्ग छोड़कर धरती के कल्याण के लिये आयी, सभी की भलाई के लिये आयी। गंगा का पूरा जीवन ही लोक कल्याण के लिये समर्पित है और लोककल्याण के लिये अपना सामथ्र्य और अपना जीवन समर्पित करने की प्रेरणा परमार्थ गंगा आरती से मिलती है। गंगा की पवित्रता, शुद्धता और शुचिता विश्व स्तर पर पवित्रता का एक मानक है।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के श्री सुरेश सोनी जी, भूतपूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड श्री रमेश पोखरियाल जी, राष्ट्रीय संगठन सचिव श्री आशीष चैहान जी, राष्ट्रीय महासचिव श्री याज्ञवल्क्य शुक्ल जी और अन्य अनेक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारियों ने सहभाग किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सभी पदाधिकारियों रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया। सभी ने मिलकर पृथ्वी, प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का संकल्प किया।