World Nature Conservation Day

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पर्यावरण की रक्षा हेतु सस्टेनेबल डेवलपमेंट का संदेश दिया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्राकृतिक संसाधन मानवीय गतिविधियों के कारण संकट की स्थिति में है। अगर पर्यावरण विरोधी गतिविधियां अब भी न रूकी तो वह दिन दूर नहीं जब आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये वह इतिहास बन कर रह जायेगा। हमें ध्यान देना होगा कि हमारे जीवन में होने वाली प्रत्येक क्रिया और गतिविधि प्रकृति पर निर्भर करती है। मानव द्वारा किये जा रहे प्रत्येक कार्य और व्यवहार का असर पर्यावरण और पृथ्वी पर पड़ता है जिसके कारण वे प्रभावित भी होते हैं।

पृथ्वी पर उपस्थित सभी मनुष्यों और प्राणियों के जीवन के लिए जल, वायु, पेड़, मिट्टी, खनिज तत्व अत्यंत आवश्यक है और यह हमें प्रकृति से ही प्राप्त होेेते हैं इसलिये प्रकृति का संरक्षण जरूरी है इसलिये हमें सतत और हरित विकास पर जोर देना होगा। हमें विकास और आर्थिक हितों के साथ पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने हेतु विशेष ध्यान देना होगा।

बदलते वैश्विक परिवेश में किसी भी देश के विकास के लिये भरपूर प्राकृतिक संसाधनों का होना नितांत आवश्यक है। वहां के नागरिकों को मूलभूत सुविधायें और विकास के नए अवसर प्रदान करने के साथ पर्यावरण के हितों को ध्यान में रखना भी जरूरी है इसलिये विकास और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने हेतु आवश्यक कदम उठाने होंगे।

पर्यावरण संरक्षण के लिये समाज के हर वर्ग को साथ आना होगा। हम छोटे-छोटे प्रयास करें यथा पालिथिन, थर्मोकोल और एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग न करें। पीपल, वट, नीम, पाकर तथा जड़दार, जलदार, छायादार, फलदार आदि पौधों का रोपण करंे इससे पर्यावरण भी शुद्ध होगा और प्रदूषण भी कम होगा।

स्वामी जी ने ग्रीन कल्चर को बढ़ावा देने का संदेश देते हुये कहा कि हम सभी को प्रकृति के अनुरूप जीवन जीना होगा और प्रकृति के अनुरूप विकास करना होगा तभी हम आगे आने वाली पीढ़ियों को सुखद भविष्य दे सकते हैं। आईये आज संकल्प ले कि प्रतिवर्ष कम से कम एक पौधे का रोपण और संरक्षण अवश्य करेंगे। सम्भव हो सके तो प्रत्येक व्यक्ति कम से कम मानसून में पांच-पांच पौधों का रोपण और संरक्षण करें तो भी विलक्षण परिवर्तन हो सकता है।

स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य को स्वयं ईश्वर ने जल, वायु और पवित्र नदियों, पहाड़ों और जंगलों से समृद्ध बनाया है, इसकी समृद्धि, सुन्दरता और शान्ति को बनायें रखना तथा इसे प्रदूषण से मुक्त बनाने में सहयोग करना हम सभी का परम कर्तव्य है। भारत सहित विश्व के अनेक देशों से यहां पर श्रद्धालु और पर्यटक आकर योग, ध्यान एवं साधना करते हैं तथा यहां व्याप्त आध्यात्मिकता को आत्मसात करते हंै क्योंकि उत्तराखंड अपार शान्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा देने वाला प्रदेश है इसलिये यहां के पहाड़ और यहां की पवित्रता को बचाये रखने के लिये हम सभी को एकल उपयोग प्लास्टिक से परहेज करना होगा।

उत्तराखंड में अक्सर ही हमने कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को देखा है, जिसका प्रमुख कारण मानव का प्रकृति के साथ बिगड़ा हुआ सामंजस्य भी है। प्रकृति के क्षय को रोकने के लिए मानव को अपने कार्यों तथा गतिविधियों को प्रकृति के अनुकूल बनाने की आवश्यकता है। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस इसी दिशा में जनसमुदाय का ध्यान आकर्षित करने का अवसर प्रदान करता है।