Guru Purnima at Parmarth Niketan

Today, on the auspicious occasion of Gurupurnima, Param Pujya Swamiji shared that Gurupurnima is the holy festival of the Guru-disciple tradition. Along with the spread of knowledge, the Guru contributes significantly to the development of the society. To commemorate the sacred day, saints and sadhus, sevaks and acharyas gathered at Parmarth Niketan to honour the one that dispels the darkness of our ignorance, allowing the light of knowledge to shine on all.

गुरूपूर्णिमा की शुभकामनायें
परमार्थ निकेतन में धूमधाम से मनायी गुरूपूर्णिमा
पंचदिवसीय सामूहिक संगीतमय श्रीरामचरित मानस पाठ का शुभारम्भ
ज्ञान प्राप्ति का महापर्व गुरूपूर्णिमा
स्वामी चिदानन्द सरस्वती

13 जुलाई, ऋषिकेश। आज गुरूपूर्णिमा के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि गुरूपूर्णिमा गुरू-शिष्य परम्परा का पावन पर्व है। गुरु ज्ञान के प्रसार के साथ-साथ समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते है।

परमार्थ निकेतन में आज पूज्य महामण्डलेश्वर स्वामी शुकदेवानन्द सरस्वती जी महाराज का 57 वाँ निर्वाण एवं गुरूपूर्णिमा महोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी ने पूज्य गुरूओं का पूजन कर पंचदिवसीय सामूहिक संगीतमय श्रीरामचरित मानस पाठ का शुभारम्भ किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पश्चिम की धरती से भेजे अपने संदेश में कहा कि गुरूपूर्णिमा महापर्व जीवन में ज्ञान के अवतरण का पावन पर्व है। सनातन काल से लेकर अब तक गुरू परम्परा के अन्तर्गत आने वाली सभी दिव्य विभूतियों और गुरूजनों को कोटि कोटि नमन! गुरूपूर्णिमा अर्थात पूर्ण-माँ। जिस प्रकार ‘माँ’ बच्चे का विकास करती है उसी प्रकार ‘गुरू’ आध्यात्मिक विकास कर जीवन में प्रकाश पैदा करते हैं। श्रीमद्भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ‘‘कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्’’ अर्थात जिससे भी प्रकाश मिले, ज्ञान प्राप्त हो, जो भी श्रेष्ठ और सही मार्ग दिखाये, जीवन के अन्धकार, विषाद, पीड़ा को दूर कर कर्तव्यों का बोध कराये वह गुरु-तत्त्व है और वह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है।

हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है परन्तु भावी जीवन का निर्माण आध्यात्मिक गुरू के द्वारा ही होता है। एक बेहतर भविष्य के निर्माण हेतु गुरु का विशेष योगदान होता है इसलिये तो कबीर दास जी ने गुरू की महिमा का वर्णन करते हुये कहा है कि-गुरू गोविन्द दोऊ खड़े का के लागु पाँव, बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय। गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है- ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। आईये उस परम पावन गुरूसत्ता को नमन करते हुये श्रेष्ठ मार्ग पर बढ़ने का संकल्प लें।