Ganga Dussehra Celebrations

On yesterday’s auspicious occasion of Ganga Dussehra, HH Param Pujya Swami Chidanand Saraswatiji, Pujya Sadhvi Bhagawati Saraswatiji, Parmarth’s Acharyas and Rishikumars and the Parmarth Parivar here and abroad celebrated the arrival of Goddess Ganga’s arrival on Earth by recommitting themselves to keeping her sacred waters clean and plastic-free during a beautiful Yagya puja and snan on her holy banks and during Pujya Sant Murlidharji Maharaj’s renowned Ram Katha programme, ongoing at the Ashram through 15 June.

“Jal Chetna Ko Jan Chetna. Jal Andolan Ko Jan Andolan,” declared Pujya Swamiji. “Water awakening has to be made a mass awakening, water revolution a mass revolution so that the divinity of the holy river Maa Ganga can remain eternal. Today, on the occasion of Ganga Dussehra, let us renew our pledge to not use single use plastic.”

Sadhviji beautifully shared that, “Maa Ganga is the ultimate purifier. We have the opportunity to give Her everything that holds us back from living in the true Divinity of ourSelves. She brings liberation not only to our soul when we die but also when we are living! We can surrender to Her our anger, grudges, resentment, guilt, unfulfilled expectations, false identifications — anything that is blocking us from living in the Truth of our Selves.”


परमार्थ निकेतन में आज गंगा दशहरा के पावन अवसर पर माँ गंगा के पावन तट पर विशाल यज्ञ का आयोजन किया। परमार्थ परिवार के सदस्यों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में गंगा स्नान और गंगा जी का अभिषेक कर माँ गंगा को स्वच्छ और प्लास्टिक मुक्त रखने का संकल्प लिया।

आज गंगा दशहरा के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि माँ गंगा एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पातल लोक से होकर बहती है। तीनों लोकों की यात्रा करने वालों को त्रिपथगा से संबोधित किया जाता है।

राजा भगीरथ जो कि इक्ष्वाकु वंश के एक महान राजा थे उन्होंने कठोर तपस्या कर माँ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अपने पूर्वजों को निर्वाण प्रदान कराने हेतु घोर तप किया था। राजा भगीरथ की वर्षों की तपस्या के बाद, माँ गंगा भगवान शिव की जटाओं से होती हुईं पृथ्वी पर अवतरित हुईं। पृथ्वी पर जिस स्थान पर माँ गंगा अवतरित हुई वह पवित्र उद्गम स्थान गंगोत्री है। माँ गंगा ने न केवल राजा भागीरथ के पूर्वजों के उद्धार किया बल्कि तब से लेकर आज तक वह लाखों-लाखों लोगों को ‘जीवन और जीविका’ प्रदान कर रही हैं तथा भारत की लगभग 40 प्रतिशत आबादी गंगा जल पर आश्रित हैं।

हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में लगने वाला विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला ‘कुंभ’ भी माँ के पावन तट पर आयोजित होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा के जल में डुबकी लगाने के लिये एकत्र होते हंै। पवित्र गंगा में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता हैं। माँ गंगा को स्पर्श करने मात्र जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होता परन्तु अगर गंगा में जल नहीं होगा तो न कुम्भ होगा और न संगम होगा इसलिये हमारी नदियों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।

स्वामी जी ने कहा कि अभी तक माँ गंगा मनुष्यों का कायाकल्प और उन्हें जीवन प्रदान करती आ रही हैं परन्तु अब गंगा के कायाकल्प की जरूरत है क्योंकि धार्मिक और सामाजिक परम्परायें, धार्मिक आस्था और सामाजिक मान्यताओं के कारण माँ गंगा में प्रदूषण बढ़ाने लगा हंै।

गंगोत्री, ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद और वाराणसी जैसे प्रमुख स्थल हैं जिनका माँ गंगा के कारण ही अत्यधिक धार्मिक महत्व है। हरिद्वार को तो स्वर्ग का प्रवेश द्वार कहा जाता है ये सब महिमा और पर्यटन गंगा के कारण है इसलिये सिकुड़ती और प्रदूषित होती गंगा को जीवंत बनाये रखने के लिये ‘जल चेतना को जन चेतना’ एवं ‘जल आंदोलन को जन आंदोलन’; जल जागरण को जन जागरण, जल क्रान्ति को जन क्रान्ति बनाना होगा ताकि पवित्र नदी माँ गंगा की दिव्यता चिरस्थायी रह सके। स्वामी जी ने आज गंगा दशहरा के अवसर पर सभी को सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का संकल्प कराया।