अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी अपनी विदेश यात्रा के पश्चात आज पधारे। परमार्थ गुरूकुल के आचार्यो, ऋषिकुमारों और सेवकों ने पुष्पवर्षा, वेद मंत्र और शंख ध्वनि से दिव्य और भव्य अभिनन्दन किया।

आज अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वेदों के मंत्र पूरे विश्व को संजीवनी देने वाले मंत्र है। यजुर्वेद में बडा ही प्यारा मंत्र है ‘‘मित्रस्य चक्षुषा समीक्ष्यामहे’’, अर्थात् पूरे विश्व के साथ मित्रवत् व्यवहार करें। साथ ही धरती पर रहने वाले समस्त प्राणियों को अपनत्व की दृष्टि से देखे। सभी मनुष्यों और जीवों के प्रति करुणा रखें यही हमारी भारतीय संस्कृति और वेद मंत्र हमें शिक्षा देते हैं। मनुष्यों की भांति अन्य सभी प्राणियों के प्रति प्रेम-करुणा और अपनत्व जरूरी है। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति है, शान्ति और सद्भाव की संस्कृति है।

स्वामी जी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर भारत एक श्रेष्ठ मित्र राष्ट्र है। भारत ने सदियों से भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंध सभी राष्ट्रों के साथ सकारात्मक बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। वैश्विक महामारी कोविड के समय भारत जिस तरह से अन्य राष्ट्रों के साथ खड़ा रहा वह अद्भुत था। वैश्विक महामारी के दौर में भारत ने मित्रता को नये सिरे से परिभाषित किया है। भारत ने हमेशा ही उदारता, शान्ति और सद्भाव का संदेश दिया।

भारत ने सदैव ही वैश्विक शांति को बनाये रखने में योगदान देते हुए सौहार्दपूर्ण एवं मित्रतात्मक संबंधों को प्राथमिकता दी है। भारत ने पूरी दुनिया को शान्ति का संदेश दिया है। भारत के जल और वायु में भी शान्ति की सुवास है। भारत हमेशा से ही शान्ति का उद्घोषक रहा हैं। हमारे ऋषियों ने सर्वे भवन्तु सुखिनः के दिव्य मंत्रों से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शान्ति की स्थापना की प्रार्थना की है।

स्वामी जी ने कहा कि जब हम शान्ति की बात करते हंै तो शान्ति से तात्पर्य केवल युद्ध विराम से नहीं है बल्कि हमारे आन्तरिक द्वंद का शमन ही वास्तविक शान्ति का स्रोत है। जब तक अन्तःकरण में शान्ति नहीं होगी तब तक न तो बाहर शान्ति स्थापित की जा सकती है और न ही जीवन में शान्ति का आ सकती है।

वास्तव में हमारे विचार ही हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं और हमारे विचार ही हमारे अपने मित्र भी हैं। जैसा वातावरण और जीवन हम चाहते हैं वैसे ही हम बन जाते हैं। यह सब हमारे अहं का विस्तार है या निस्तार पर निर्भर करता है। हमारा अहंकार और अभिलाषायें ही शान्ति के मार्ग के सबसे बड़े अवरोधक है। हम जितना अधिक स्वयं को अहम से अलग करते जायेंगे उतना अधिक हम स्वयं को शान्ति के नजदीक पायेंगे।

स्वामी जी ने कहा कि दुनिया को एकजुट करने लिये शान्ति ही एक मात्र अस्त्र है। गंाधी जी ने शान्ति की बड़ी सुन्दर व्याख्या की है आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अंधा बना देगी, इसलिये शक्ति प्रदर्शन नहीं बल्कि शान्ति से शक्ति का संतुलन ही सर्वोत्तम उपाय है और जहां मित्रता होगी वहां पर युद्ध का विचार जन्म नहीं ले सकता।