Rajyogini Shivaniji from Prajapita Brahma Kumari Ishwariya Vishwavidyalaya Visits Parmarth

We were honoured to have Rajayogini Shivani ji BK Shivani and other esteemed guests from Prajapita Brahma Kumari Ishwariya Vishwavidyalaya at Parmarth Niketan. They were warmly greeted by our Rishi Kumars and Acharyas with conch shells and mantras, where she met with HH Pujya Swamiji Pujya Swami Chidanand Saraswatiji – Muniji and Pujya Sadhviji Sadhvi Bhagawati Saraswati. The discussions centered around the principles of Titiksha, Lord Shri Krishna’s teachings, and the transformative power of meditation, which left a profound impact on all present. Rajayogini Shivani ji also commended the divine Ganga Aarti and received a Rudraksha plant as a symbol of blessings. On International Labor Day, Pujya Swamiji acknowledged the hard work and dedication of Karmayogis and emphasized the importance of respecting and appreciating all individuals in society, promoting unity and gratitude towards those who contribute to society.


परमार्थ निकेतन में अध्यात्मिक संस्था प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरिय विश्‍वविद्यालय से राजयोगिनी शिवानी जी पधारी। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और आचार्यों ने शंख ध्वनि और वेदमंत्रों से उनका अभिनन्दन किया।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और जीवा की अन्तराष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी से भेंट कर विश्व विख्यात परमार्थ निकेतन गंगा आरती में सहभाग किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शिवानी जी आध्यात्मिक अनुशासन का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनके जीवन, उनके शब्दों, उनके उद्बोधनों ने अनेकों के जीवन में विलक्षण परिवर्तन किया। आध्यात्मिक अनुशासन जीवन जीने की एक खूबसूरत कला है जिसे हमारे ऋषियों ने कई शताब्दियों पहले विकसित की थी।

स्वामी जी ने कहा कि जीवन में तितिक्षा बहुत जरूरी है जो हमें शाश्वत शांति और सद्भाव की ओर ले जाती है तथा मानसिक प्रदूषण को भी साफ करती है। वर्तमान समय में तो वाणी, विचार और वायु तीनों प्रदूषण तीव्र गति से बढ़ रहे हैं इसलिये  हमारे ऋषियों ने मानसिक स्वच्छता के महत्व को समझा और निष्कर्ष निकाला कि योग व ध्यान के नियमित अभ्यास से शरीर और आत्मा से अनावश्यक प्रदूषक तत्व साफ किये जा सकते है और इससे एक सार्वभौमिक चेतना जागृत की जा सकती है।

स्वामी जी ने कहा कि भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, ’’समत्वम् योग उच्यते’’ अर्थात् योग एक संतुलित अवस्था है। योग, मनुष्य और प्रकृति के बीच एकता का संबंध विकसित करती है। यह हमें हमारी आनंदमय स्थिति में वापस ले जाती है। कृतज्ञता से भरी एक स्थायी जीवन शैली के लिये मानवीय मूल्यों-आनंद व शांति का होना नितांत आवश्यक है। पूज्य आदि शंकराचार्य जी ने अपना अधिकांश समय ज्ञान योग और राज योग की निरंतरता के लिए समर्पित किया। उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा योगिक संस्कृतियों के विकास के लिए लगा दिया और हम सभी को मन से नकारात्मक विचारों को दूर करने के लिए ध्यान करने का संदेश दिया।

राजयोगिनी शिवानी जी ने जीवन में सकारात्मकता को बनाये रखने पर जोर देते हुये कहा कि ध्यान एक अभ्यास है जो हमें आत्म-जागरूक होने और स्वयं के भीतर देखने की स्थिति तक पहुंचने के लिए प्रशिक्षित करता है। ध्यान हमारी एक समृद्ध परम्परा है जो पूरे जीवन को बदल देती है। उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा आरती भक्तियोग व ध्यान योग का उत्कृष्ट संगम है। जब यहां पर ’सबसे उँची प्रेम सगाई’ का कीर्तन होता है तब मन ध्यान की उच्चत्तम अवस्था को प्राप्त करता है। वास्तव में गंगा जी का यह प्यारा तट भक्ति, शक्ति व शान्ति का दिव्य केन्द्र है।

स्वामी जी और साध्वी जी ने शिवानी जी को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा आशीर्वाद स्वरूप भेंट किया। इस अवसर पर राजयोगिनी बहने, भाई, सुश्री गंगा नन्दिनी, आचार्य संदीप शास्त्री, आचार्य दीपक शर्मा और सभी आचार्य व ऋषिकुमार उपस्थिति थे।

आज अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि कर्मयोगी अपने कठोर परिश्रम से कष्टों को सहते हुये दूसरों के जीवन को सहज और सरल बनाते है। हमारे कर्मयोगी भाई-बहन अपने अथक परिश्रम, त्याग और अपनी क्षमताओं से राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं वास्तव में वे सभी के लिये प्रेरणा के स्रोत हैं। हमें हर हाथ का सम्मान और हर पसीने की बूंद पर अभिमान होना चाहिये।