Participants of Ganga Awareness & Aarti Training Workshop Performed Jalabhishek of the World Globe on World Day to Combat Desertification and Drought

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज विश्व मरूस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन में गंगा के प्रति जागरूकता एवं आरती प्रशिक्षण कार्यशाला में सहभाग करने वाले प्रतिभागियों को संबोधित करते हुये कहा कि गंगा जी सहित अन्य नदियों के तटों पर आरती का क्रम शुरू कर हम धरती की रूधिरवाहिकाओं को बचा सकते हैं। नदियों के संरक्षण में न केवल जीवन और जीविका बचेगी बल्कि धरती पर बढ़ते सूखे को भी कम किया जा सकता है। नदियों को संरक्षित कर हम अपने कल्चर, नेचर और फ्यूचर को बचा सकते हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में भारत के विभिन्न राज्यों और विभिन्न घाटों से आये पुजारियों ने विश्व ग्लोब का जलाभिषेक किया। स्वामी जी ने सभी को जल संरक्षण और पौधारोपण का संकल्प कराते हुये कहा कि अब पूजा के अवसर पेड़े नहीं बल्कि पेड़ बांटे।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने बताया कि हमने वर्ष 1997 मंे परमार्थ गंगा तट पर गंगा आरती का क्रम आरम्भ किया, अब यह गंगा आरती केवल भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के पर्यटन और तीर्थाटन के मानचित्र पर उत्कृष्ट स्थान रखती है। दिव्य गंगा आरती में विश्व के अनेक देशों के आध्यात्मिक, राजनैतिक, फिल्मजगत, उद्योगजगत, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद्, जल राजदूत, अनेक देशों के राष्ट्रपति, राज्यपाल, राजदूत, संगीतज्ञ और प्रमुख विभूतियां ने सहभाग किया और अनवरत रूप से यह क्रम जारी है। परमार्थ निकेतन में आने वाले श्रद्धालु और आनलाइन प्लेटफार्म पर आरती के माध्यम से मानवता की सेवा, पर्यावरण, जल संरक्षण और शान्ति का संदेश लेकर जाते हैं। हमें हर तट को ऐसा बनाना है कि वहां से न केवल जल प्रवाहित हो बल्कि जल के साथ जागरूकता के संदेश भी निरंतर प्रवाहित होते रहें।

विश्व मरूस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस वर्ष 2023 की थीम ‘‘उसकी भूमि। उसके अधिकार।’’ का उद्देश्य है कि भूमि, प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा हेतु महिलाएं प्रमुख भूमिकाएँ निभाती हैं परन्तु वर्तमान समय में भी अधिकांश देशों में, महिलाओं का भूमि पर असमान और सीमित पहुंच व नियंत्रण है। अर्थात् लैंगिक समानता के बिना इस लक्ष्य को प्राप्त नहीें किया जा सकता।

महिलाएं भूमि और प्रकृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है परन्तु जब भूमि बंजर हो जाती है और जल की कमी हो जाती है, तो महिलायें ही अक्सर सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। महिलाओं के भविष्य और मानवता के भविष्य में प्रत्यक्ष निवेश के लिये आज से ही पौधारोपण को जीवन का अभिन्न अंग बनाना होगा। यह महिलाओं और लड़कियों के लिए वैश्विक भूमि बहाली और सूखा प्रतिरोध प्रयासों में सबसे आगे होने का समय है।

2023 मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस पर वैश्विक ध्यान महिलाओं के भूमि अधिकारों पर है- 2030 तक लैंगिक समानता और भूमि संरक्षण से जुड़े वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने और कई अन्य सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की उन्नति में योगदान करने के लिए आवश्यक है। वर्तमान समय में वैश्विक कृषि कार्यबल का लगभग आधा हिस्सा महिलाओं का है – फिर भी दुनिया भर में पाँच भूमिधारकों में से एक से भी कम महिलाएँ हैं।

विश्व स्तर पर, महिलाएं पहले से ही हर दिन सामूहिक रूप से 200 मिलियन घंटे जल भर कर लाने में लगाती हैं। कुछ देशों में, एक बार जल लाने की इस यात्रा में एक घंटे से अधिक समय लगता है। मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे की अग्रिम पंक्ति में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों की आवाज को बढ़ाना और दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के भूमि अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक समर्थन जुटाने हेतु इस वर्ष प्रयास किया जा रहा है। जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो पूरा परिवार और समुदाय लाभान्वित होता हैं।

ज्ञात हो कि जीवन को नुकसान पहुंचाने वाले मामले में सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है सूखा, जिससे व्यापक स्तर पर फसलों को नुकासान होता है, जंगलों में आग लग जाती है और जल की कमी के कारण पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है। अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी का लगभग 3 चैथाई सूखा प्रभावित कर सकता है इसका केवल एक ही समाधान है पौधों का रोपण और संरक्षण। सम्पूर्ण मानवता और पारिस्थितिक तंत्र के विनाशकारी परिणामों से बचने हेतु हम सब को मिलकर शीघ्र प्रयास करने होंगे।