Inauguration of Shrimad Bhagwat Katha at Parmarth Niketan

परमार्थ निकेतन में आज श्रीमद् भागवत कथा का शुभारम्भ हुआ, इस पावन अवसर पर कथा प्रेमियों को परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ।

परमार्थ गंगा तट पर प्रवाहित हो रही श्रीमद् भागवत कथा रूपी ज्ञान गंगा आचार्य श्री मृदृल कृष्ण गोस्वामी जी के मुखारविन्द से प्रवाहित हो रही है।

कथा आयोजक श्रीमती और श्री रिशाल सिंह जी एवं समस्त परिवार ने कलशयात्रा के साथ श्रीमद् भागवत कथा रूपी ज्ञान यज्ञ का शुभारम्भ किया।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज माँ भागीरथी गंगा के पावन तट पर भागवत रूपी गंगा, एक जिव्हा गंगा और एक जटा गंगा दोनों का संगम हो रहा हैं और दोनों की भगवान शिव के माध्यम से प्रवाहित हो रही हैं। आचार्य श्री मृदुल कृष्ण जी मृदुल भी है और मधुर भी है।

स्वामी जी ने कहा कि भक्ति की शक्ति इतनी अद्भुत है कि व्यक्ति उसमें खो जाता है तो प्रभु को पा लेता है। भक्ति में खोना ही पाना है। हमें क्या चाहिये, क्या पाना है जब ये समझ आ जाये तो जीवन धन्य हो जाता है, फिर यह जरूरी नहीं बहुत कुछ बड़ा-बड़ा हो। जीवन बड़ा हो या न हो परन्तु बढ़िया हो जाये। भागवत कथा का यह रस जीवन को बड़प्पन भी देता है; बढ़ियापन भी देता है और साथ-साथ प्रभु की कृपा भी प्राप्त होती है।

यहां आकर कुछ भीतर उतरे, अपने गहरे उतरे क्योंकि यह स्थान ही ऐसा है। आप सब भाग्यशाली है कि मां गंगा के तट पर हैं। यहां आकर तन पवित्र, धन पवित्र और

मन पवित्र करने की इस बेला में अपने आप को समर्पित करें क्योंकि जब तक प्रभु कृपा न हो तब तक करूणा गंगा जीवन में प्रवाहित नहीं होती है यह करूणा का प्रवाह सब के हृदय प्रवाहित होता रहे।
स्वामी जी ने कहा कि हम मोदी जी के देश में जी रहे हैं जो विकास करते-करते भी विरासत को नहीं भूलते।

आचार्य श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी जी ने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण और नाम संर्कीतन से वाणी शुद्ध और पवित्र होती है। उन्होंने कहा कि पूज्य महाराज जी समाज और राष्ट्रभक्ति के लिये समर्पित जीवन जीते हंै। संसारी व्यक्ति अपने लिये; स्वार्थ हेतु जीवन जीते हैं परन्तु पूज्य स्वामी का जीवन परमार्थ के लिये है।

उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा कल्याण में कल्याण करने वाली है क्योंकि श्रीमद् भागवत कथामृत है, इसे श्रवण कर जीव की मुक्ति हो जाती है।

श्रीमती और श्री रिशाल सिंह जी एवं समस्त परिवार श्रद्धापूर्वक दिव्य श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कर रहे हैं। स्वामी जी ने कथा व्यास श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी जी को हिमालय की हरित भेंट भगवान शिव का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कवि, उपन्यासकार, लघु कथाकार, निबंधकार, नाटककार, संगीत रचनाकार, चित्रकार, शिक्षाविद् गुरूदेव श्री रवींद्रनाथ टैगोर जी की जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि अपने जीवन और अपने असंख्य कार्यों के माध्यम से गुरूदेव ने जनसमुदाय को अपने उच्चतम स्वरूप को महसूस करने और आनंदमय और जीवन को उत्पादक बनाने का मार्ग दिखाया। गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने दो देशों के राष्ट्रगान जन गण मन (भारत) और अमर शोनार बांग्ला (बांग्लादेश) के अलावा, बंगाली में 2,000 से अधिक गीतों को लिखा और संगीतबद्ध किया। भारतीय रागों पर आधारित इन गीतों की धुनों का मानव मन पर जादुई एवं सुखदायक प्रभाव पड़ता है। उनके गीत मानवीय भावनाओं के सरगम को व्यक्त करते हैं ऐसे महापुरूष को शत-शत नमन।