Harela Festival Tree Plantation

On this Harela Festival – which marks the onset of monsoon season in Uttarakhand – HH Param Pujya Swami Chidanand Saraswatiji shared that this popular festival offers a unique message of greenery, the protection of nature and the environment. “There is,” He said, “an unbreakable relationship between humans and nature, and humans can thrive if we merely preserve nature!”

Various activities – including today’s tree plantation led by @Ganga Nandini ji, our Rishkumars and a group of Kanwad Yatris – are being organized under the joint aegis of Parmarth Niketan and the Forest Department to spread the message of forest health, environmental protection and water conservation during the Harela festival and Kanwad Mela. Rudraksh saplings – part of the 75000 plants committed – are being planted at selected locations in Garhwal Mandal by Parmarth Niketan and the Forest Department.

परमार्थ निकेतन में मनाया हरेला उत्सव

पौधारोपण कर पर्यावरण संरक्षण का दिया संदेश

प्रकृति, संस्कृति और संतति की रक्षा के लिये सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करने का स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने दिया संदेश

हरेला पर्व संस्कृति और प्रकृति का अनूठा संगम

स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 16 जुलाई। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने प्रदेशवासियों को उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला पर्व की शुभकामनायें देते हुये अपने संदेश में कहा कि हरेला पर्व हरियाली संवर्द्धन, प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण का अनुपम सन्देश देता है।

हरेला पर्व के अवसर पर सुश्री गंगा नन्दिनी त्रिपाठी जी ने परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और कांवड यात्रियों के साथ पौधा रोपण कर संदेश दिया कि मानव और प्रकृति के बीच अटूट संबंध है, प्रकृति का संरक्षण कर उसे और प्रगाढ़ किया जा सकता है।

हरेला पर्व एवं कांवड मेले में वन, पर्यावरण एवं जल संरक्षण का संदेश प्रसारित करने हेतु परमार्थ निकेतन और वन विभाग के संयुक्त तत्वाधान में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। परमार्थ निकेतन और वन विभाग द्वारा गढ़वाल मंडल में चयनीत स्थानों पर रूद्राक्ष के पौधों का रोपण किया जा रहा है। इस मानसून में 75-75 हजार रूद्राक्ष के पौधों का रोपण करने का संकल्प लिया गया।

उत्तराखंड नैसर्गिक सौंदर्य और अपार जल राशियों से युक्त राज्य है, जो दुनिया भर के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां के कण-कण में प्रकृति अपने जीवंत रूप में विद्यमान है। उत्तराखंड जितना नैसर्गिक सौन्दर्य से युक्त है उतना ही यह लोकपरम्पराओं से भी समृद्ध है। यहां का प्रत्येक पर्व प्रकृति के साथ अटूट रिश्ते को दर्शाता है। उत्तराखण्ड के लोक पर्वो में नदियों, पहाड़ों, प्रकृति और पर्यावरण के साथ अटूट संबंध देखने को मिलता है।

हरेला का पर्व हमें नई ऋतु की शुरुआत का संदेश देता है। हरेला के नौ दिन पहले हरेले बोये जाते है तथा दसवें दिन अर्थात हरेला पर्व के अवसर पर उन्हें काटा जाता है। उसके बाद इसे देवता को समर्पित किया जाता है। हरेला पर्व सुख, समृद्धि और शान्ति का प्रतीक है। हरेले के साथ जुड़ी यह भी मान्यता है कि जिस वर्ष हरेला जितना बड़ा होगा फसलें भी उतनी अच्छी होगी। वास्तव में यह पर्व “पौधारोपण एवं प्रकृति संरक्षण” का पर्व है। प्रकृति और पर्यावरण से ही जीवन और जीविका है; सम्पत्ति और संतति है इसलिये प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि संवर्द्धन करें।