Hanuman Jayanti Celebrations at Parmarth Niketan

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज हनुमान जन्मोत्सव के पावन अवसर पर देशवासियों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि भगवान श्री राम भारत की आत्मा हैं तो हनुमान जी भारत की विरासत हैं।

हनुमान जयंती के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन में प्रातःकाल योगाभ्यास से आज के दिन की शुरूआत हुई। उसके पश्चात विश्व शान्ति हवन, ध्यान, हनुमान चालीसा, सुन्दर कांड का पाठ, दिव्य गंगा आरती और फिर सत्संग में सहभाग कर सभी श्रद्धालु आनन्दित हुये।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि महाबली हनुमान अष्ट सिद्धि और नव निधि के दाता हैं। श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज लिखते है कि ‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस-बर दीन्ह जानकी माता।।’ हनुमान जी शक्ति, शौर्य और विजयश्री के प्रतीक हंै। भक्ति, भाव और समर्पण का अद्भुत समन्वय हंै।

स्वामी जी ने कहा कि महाबली हनुमान जी अपने लिये नहीं जिये, अपने लिये, कुछ भी तो नहीं किया उन्होंने सब कुछ प्रभु के लिये तथा जो भी है वह सब भी प्रभु का इस भाव से जो किया वह भी सब प्रभु को ही समर्पित कर दिया। तेरा तुझको सौंपते क्या लागत है मोर। आज समाज को ऐसे ही विचारों की जरूरत है जहां ’राम काज कीन्हें बिना, मोहि कहाँ विश्राम।’ जब तक राम काज; सेवा कार्य पूर्ण न हो विश्राम कहाँ, सुख कहाँ, चैन कहाँ। आईये प्रभु से प्रार्थना करें प्रभो! हमारे जीवन में न अहम रहे न वहम, बस ’सेवा, समर्पण एवं त्याग से युक्त यह जीवन प्रभु को अर्पित हो और हम सब भी सादगी, सरलता और हनुमान जी जैसी उदारता के साथ समाज और समष्टि की सेवा में अपने को समर्पित करें यही तो है जीवन का सार। इस प्रकार हम सभी के हृदय में भी हनुमान जी का अवतरण हो।

स्वामी जी ने कहा कि हनुमान जी ने विकट परिस्थितियों में भी अपने आदर्श और मर्यादाओं का साथ नहीं छोड़ा। हनुमान जी का पावन चरित्र अद्भुत और अलौकिक है। सम्पूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बांधने और भयमुक्त करने के लिये उन्होंने अपने प्रभु का पूरा-पूरा साथ दिया। अपनी निपुणता से ऋषियों, मुनियों और संतों के तप और यज्ञ की रक्षा हेतु असुरों का समूल नाश करने हेतु उत्कृष्ट योगदान दिया। और इस प्रकार विश्व का कल्याण करने वाले यज्ञों की रक्षा की। रघुकुल की रीत का पालन करने के लिये उन्होंने भी अपने प्रभु के साथ बड़े से बड़ा दुख सहा परन्तु कभी हार नहीं मानी।

श्री हनुमान जी की निष्ठा सागर के समान और साहस हिमालय के समान हैं। भगवान श्री राम भारत के सांस्कृतिक विरासत हैं तो हनुमान जी उस विरासत के संरक्षक है। सनातन धर्म की पहचान श्रीराम जी हैं तो हनुमान जी एक आज्ञाकारी, सेवाभावी भक्त हैं। कबीरदास जी ने कहा है कि ‘निर्गुण राम जपहु रे भाई।’ और हनुमान जी का संपूर्ण जीवन ही श्रीराम मय था, श्री राम के लिये ही था। उनके जीवन की हर श्वास श्री राममय थी और हर यात्रा पवित्र राम नाम से पूर्ण होती थी, ऐसे भक्त हनुमान को श्रद्धा पूर्वक नमन।