Ganesh Chaturthi Message

As we prepare to celebrate Shri Ganesh Chaturthi on Wednesday, HH Param Pujya Swami Chidanand Saraswatiji shared a beautiful message encouraging all devotees to adopt innovative traditions to celebrate our festivals. “Let us make our festivals the journey of a new creation. Let us celebrate them in creative ways, in new innovative ways so that our environment will be saved, our traditions will be saved, nature will be saved and our future generations will be saved.”

He reminded us that, in the past, the Ganesh murtis that we submerged after worship at Havan were made of cow dung and clay, and – unlike today’s modern plastics, plaster of Paris, Thermocol and other products – quickly dissolved in the water, which purified both the water and the soil so that the environment was protected.

“Now again,” Pujya Swamiji says, “it is necessary for us to adopt the mythological traditions of our scriptures. One way is to make an idol with the seeds of medicinal plants. After 14 days, when the idol is immersed, it should be placed in a pot at home, in the garden. Immerse it in or in any garden so that the seed which has been put in the stomach of Ganesh ji can be planted and protected properly. That plant will symbolize the blessings and grace of Lord Ganesha. In this way our worship and immersion will be a journey of creation.”

“Let us take a pledge that we will celebrate our festivals in an eco-friendly manner, so that our environment will be protected.”

‘प्रकृति संरक्षक श्री गणेश जी की स्थापना पर्यावरण संरक्षण के साथ’
डेकोरेशन नहीं इनोवेशन
हमारी श्रद्धा कहीं नदियों का श्राद्ध न बने
स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 29 अगस्त। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्री गणेश चतुर्थी से पहले देशवासियों का आह्वान करते हुये ‘प्रकृति संरक्षक श्री गणेश जी’ की स्थापना पर्यावरण संरक्षण के साथ करने का संदेश दिया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गणेशोत्सव केवल पारिवारिक उत्सव नहीं बल्कि पर्यावरण और समुदायिक भागीदारी का उत्सव है, इससे समाज और समुदायों का मेलजोल तो बढ़ता ही है साथ ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी प्रसारित होगा। हमारे पूर्वजों ने श्री गणेश जी की स्थापना और विसर्जन की परम्परा को बड़ी ही दिव्यता के साथ आगे बढ़ाया।

वर्तमान समय में श्री गणेश पूजन की दिव्य परम्परा का स्वरूप हम सभी के सामने है और केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में है, लेकिन जिस परम्परा से पर्यावरण बिगड़ता हो, उन परम्परारों पर अब ध्यान देने की जरूरत है। ऐसी परम्पराओं को अब हमें बदलना होगा ताकि हमारी परम्पराओं का मूल भी बचे और पर्यावरण भी बचे इसलिये श्री गणेश जी की स्थापना और विसर्जन करें लेकिन नये सर्जन के साथ करें।

शास्त्रों में तो यह मर्यादा है कि गणेश जी की जो मूर्ति व प्रतिमा है वह, यज्ञ, पूजा और उत्सवों हेतु मात्र एक अंगूठे के बराबर बनाने का विधान हैं। जब यह परम्परा प्रारम्भ हुई तब पूजा में, हवन में, यज्ञ में गोबर और मिट्टी के श्री गणेश बनाये जाते थे और फिर पूजन के पश्चात उस प्रतिमा को तालाबों में, जलाश्यों में, सरोवरों में, उनका विसर्जन किया जाता था। हमारे शास्त्रों में श्री गणेश जी की मूर्ति को नदी में, जल में प्रवाहित करने का विधान है क्योंकि जल में गोबर और मिट्टी घुल जाती हैं और जो गोबर के जो गुणकारी तत्व हंै, वह जाकर पानी की तलहटी में मिलते है, जिससे वे मिट्टी, पानी आदि अन्य चीजों को शुद्ध करते हैं, उससे धरती उपजाऊ बनती है तथा पर्यावरण की रक्षा भी होती है। पर्यावरण के साथ -साथ इससे गौ माता का संरक्षण और संवर्द्धन भी सम्भव है। गणेश चतुर्थी को शास्त्रोक्त विधि से मनाने पर हमारी परम्परायें भी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा। बाकी जो प्लास्टर आॅफ पेरिस और सिंथेटिक की प्रतिमायें हैं, वह कोई शास्त्रीय विधान के अनुसार नहीं हैं।

आज जिस तरह से प्लास्टिक और प्लास्टर आॅफ पेरिस, थर्मोकोल या अन्य उत्पादों से बनी प्रतिमाओं को क्रय कर उनका पूजन करने के पश्चात उन मूर्तियों का नदियों में, तालाबों में विसर्जन किया जाता हैं परन्तु यह जल और थल दोनों के लिये हानिकारक है। उससे प्रदूषण तो बढ़ता ही है साथ में पूजित प्रतिमाओं की दुर्गति भी देखने को मिलती है इसलिये शास्त्रों के अनुरूप एवं पर्यावरण की रक्षा करते हुये गणेश जी का विसर्जन करना होगा। अब फिर से हमें इन पौराणिक परम्पराओं को अपनाना जरूरी है।

वर्तमान समय में हम गोबर के, माटी के या आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से गणेश जी बनायें पूजन करें और विसर्जन के समय धरती में गढ़ढा कर उन्हें विसर्जित किया जाये या फिर भगवान गणेश जी की प्रतिमा बनाते वक्त उनके पेट में जो फल आपकोेे पसंद हो, तुलसी का बीज या औषधिय पौधों के बीज रखकर प्रतिमा बनायें। 14 दिन बाद जब प्रतिमा का विर्सजन करे तो उसे अपने घर पर ही किसी गमले में, गार्डन में या किसी उद्यान में विसर्जित करंे ताकि गणेश जी के पेट में जो बीज डाला है उसका रोपण और संरक्षण ठीक से किया जा सके। वह पौधा भगवान श्री गणेश के आशीर्वाद और कृपा दृष्टि का प्रतीक होगा। इस प्रकार हमारा पूजन और विसर्जन सृजन की यात्रा होगी।

स्वामी जी ने कहा कि आज ऐसे ही इनोवेटिव आयोजनों और परम्पराओं को अपनाने की जरूरत है। हमारे पर्व और त्यौहार नये सृजन की यात्रा है, एक नये सर्जन की यात्रा है अतः इसे हम सृजनात्मक तरीकों से मनायें, एक नये इनोवेटिव ‘वे’ (रास्ते) से मनायंे।

आईये हम संकल्प लें कि हम अपने पर्व और त्योहारों को ईकोफें्रडली तरीके से मनायेंगे जिससे हमारा पर्यावरण भी बचेगा, परम्परायें भी बचेगी, प्रकृति भी बचेगी और हमारी पीढ़ियां भी बचेगी।