Completion of Shrimad Bhagwat Katha at Parmarth Niketan

परमार्थ निकेतन में सात दिनों से प्रवाहित हो रही श्रीमद् भागवत कथा रूपी ज्ञान गंगा की आज पर्यावरण संरक्षण के संकल्प के साथ पूर्णाहुति हुई।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रीमद् भागवत कथा के समापन अवसर पर राजस्थान, हैदराबाद और विभिन्न राज्यों से आये भक्तों को संदेश देते हुये कहा कि गंगा के पावन तटों पर सत्संग, कथा, भागवत कथा आदि धार्मिक कृत्यों का विशेष महत्व है क्योंकि नदियों के तटों पर ही सभ्यताओं का उद्भव हुआ है। हम सभी जानते हैं कि जल पृथ्वी का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन है और हमें न केवल अपने लिये इसे प्रदूषण मुक्त करना है; इसकी रक्षा करनी है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये भी इसे बचा कर रखना है।

भारत में जल प्रबंधन अथवा संरक्षण संबंधी अनेक पारम्परिक विधियाँ मौजूद हैं, परंतु उन नीतियों के कार्यान्वयन हेतु हम सभी को ध्यान देना होगा। भारत में नदियों की स्थिति दयनीय है इसलिये हम सभी को नदियों की स्थिति पर गंभीरता से विचार करने के साथ ही उन्हें प्रदूषण मुक्त करने हेतु स्वयं को समर्पित करना होगा।

स्वामी जी ने कहा कि हमें अपने पर्वों, त्यौहारों, कथाओं, जन्मदिवस और विवाहदिवस के अवसरों को पौधारोपण से जोड़ना होगा तभी हम अपने जल स्रोतों को बचा सकते हैं। उन्होंने कहा कि जल प्रबंधन का आशय जल संसाधनों के इष्टतम प्रयोग से है और जल की लगातार बढ़ती मांग के कारण देशभर में जल के उचित प्रबंधन की आवश्यकता कई वर्षों से महसूस की जा रही है।

स्वामी जी ने आज सभी को ‘रीसायकल, रिड्यूज और रियूज’ को अपनाने का संकल्प कराते हुये कहा कि अगर अब भी हम नहीं सम्भले तो बहुत देर हो जायेगी। हमें यह समझना होगा कि धरती तो आगे भी रहेगी पर असली संकट तो मनुष्यों और प्राणियांे पर है। किसी ने ठीक ही कहा है कि जब आखिरी पेड़ काटा जाएगा, आखिरी नदी का पानी सूख जाएगा, आखिरी मछली का शिकार हो जाएगा तब इंसान को अहसास होगा अब हम कैसे जी सकते है।

स्वामी जी ने कहा कि प्राचीन समय में मानव प्रकृति का उपासक था, पहले प्रकृति के दोहन का भाव नहीं था और जीवन पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर था। प्रकृति की पूजा करने के साथ उसकी श्रेष्ठता का भाव था इसी भाव को पुनः जागृत करना होगा। स्वामी ने कथा की याद में कम से कम पांच-पांच पौधों के रोपण का संकल्प कराया।