परमार्थ निकेतन पधारे गोवत्स श्री राधाकृष्णजी महाराज

परमार्थ निकेतन में गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी पधारे। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी श्री राधाकृष्ण जी की भक्तिमय भेंट हुई। उन्होंने गंगा जी की आरती में सहभाग किया।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि नानी बाई का मायारा भक्ति की शक्ति की दिव्य कथा है। भक्ति हृदय की गहराईयों से आती हैं बुद्धि या तर्क से नहीं। भक्ति गहरी धार्मिक निष्ठा और प्रभु के प्रति विश्वास से आती है। अपने प्रभु के प्रति अखंड विश्वास और ईश्वर ही संपूर्ण जगत का नियंता है इस अद्भुत विश्वास से आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।

स्वामी जी ने कहा कि यह संपूर्ण विश्व ईश्वर की ही अभिव्यक्ति है अगर यह दृष्टिकोण रहा तो समाज में नैतिकता की स्थापना होते देर नहीं लगेगी। दुनिया का हर प्राणी ईश्वर की संतान है यह भाव जागृत हो गया तो किसी भी प्राणी के प्रति हमारे मन में द्वेष नहीं होगा सभी के प्रति भ्रातृत्व का भाव उभरेगा। दूसरों के दुःख में दुःखी और करुणा से भरकर उनके दुःखों को दूर करना ही वास्तविक भक्ति है।

परमार्थ निकेतन में तीन दिवसीय कथा नानी बाई का मायरा का आज से शुभारम्भ हुआ। श्री राधाकृष्णजी ने बताया कि नानी बाई का मायरा’ भक्त नरसी की भगवान श्री कृष्ण की भक्ति पर आधारित कथा है जिसमें ’मायरो’ अर्थात ’भात’ जोकि मामा या नाना द्वारा कन्या को उसकी शादी में दिया जाता है वह भात स्वयं श्री कृष्ण लाते हैं, नानी बाई नरसी जी की पुत्री थी और सुलोचना बाई नानी बाई की पुत्री थी, सुलोचना बाई का विवाह जब तय हुआ था तब नानी बाई के ससुराल वालों ने यह सोचा कि नरसी एक गरीब व्यक्ति है तो वह शादी के लिये भात नहीं भर पायेगा, उनको लगा कि अगर वह साधुओं की टोली को लेकर पहुँचे तो उनकी बहुत बदनामी हो जायेगी इसलिये उन्होंने एक बहुत लम्बी सूची भात के सामान की बनाई उस सूची में करोड़ों का सामान लिख दिया गया जिससे कि नरसी जी उस सूची को देखकर खुद ही न आये।

नरसी जी को निमंत्रण भेजा गया साथ ही मायरा भरने की सूची भी भेजी गई परन्तु नरसी जी के पास केवल एक चीज थी वह थी श्री कृष्ण जी की भक्ति, इसलिये वे उनपर भरोसा करते हुए अपने संतों की टोली के साथ सुलोचना बाई को आशीर्वाद देने के लिये अंजार नगर पहुँच गये, उन्हें आता देख नानी बाई के ससुराल वाले भड़क गये और उनका अपमान करने लगे, अपने इस अपमान से नरसी जी व्यथित हो गये और रोते हुए श्री कृष्ण को याद करने लगे, नानी बाई भी अपने पिता के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और आत्महत्या करने दौड़ पड़ी परन्तु श्री कृष्ण जी ने नानी बाई को रोक दिया और उसे यह कहा कि कल वह स्वयं नरसी के साथ मायरा भरने के लिये आयेंगे।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्री राधाकृष्णजी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर सभी भक्तों को पर्यावरण एवं जल संरक्षण का संकल्प कराया।