धार्मिक परम्पराओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य ने विश्व शान्ति और पर्यावरण संरक्षण हेतु परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने हवन कर विश्व शान्ति की प्रार्थना की।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वैश्विक परिदृश्य में पर्यावरण एक अहम विषय है। ग्लोबल वार्मिग, ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव, जैव विविधता संकट तथा प्रदूषण को नियंत्रित करना वर्तमान समय की सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक हैं।

स्वामी जी ने कहा कि पर्यावरणीय संरक्षण के लिये वैश्विक स्तर कार्य कर रही संस्थायें और धार्मिक संगठनों की महत्वपूर्ण हैं क्योंकि विश्व के प्रत्येक 10 में से 8 व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में धर्म से संबंधित हैं इसलिये धार्मिक और आध्यात्मिक संगठनों का महत्वपूर्ण योगदान है। विश्व के सभी धर्म, धर्मग्रंथ और आध्यात्मिक संगठन पर्यावरण के प्रति सद्भाव व नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा देते हैं लेकिन वर्तमान में धार्मिक ग्रंथों और समाज के व्यवहार अंतर स्पष्ट दिखायी देता है इस अंतर को पाटने के लिये धर्म और पर्यावरण से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देना होगा।

स्वामी जी ने कहा कि धर्म और पर्यावरण में एक अटूट संबंध है तथा सभी धर्मों का दृष्टिकोण भी प्रकृति के प्रति सकारात्मक रहा है परन्तु अब पर्यावरण संरक्षण के लिये जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन करना होगा। पर्यावरण के प्रति जागरूकता युक्त जीवनशैली को बढ़ावा देना होगा। पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को अपनाने और बढ़ावा देने के लिये हम सभी को संकल्प लेना होगा। हम सभी को पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारों को बढ़ावा देना होगा ताकि समृद्ध और सुरक्षित समाज की स्थापना की जा सके।

स्वामी जी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिये संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान व प्रकृति के साथ सामंजस्ययुक्त जीवन शैली अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान समय में प्रकृति व संस्कृति के मानवीय संबंधों, सहचर्य व सोच के मध्य दूरी बढ़ती जा रही है, जिसके कारण आज पूरा विश्व को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रकृति व संस्कृति के संयोजन के बिना जो विकास हो रहा है वह पलायन, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिग जैसी समस्याओं को जन्म दे रहा हैं इसलिये प्रकृति अनुकूल व्यवहार का पालन करना ही संस्कृति है। प्रकृति और संस्कृति के बिना मानव अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रकृति के संरक्षण के साथ ही संस्कृति के विकास को भी समृद्ध और समुन्नत करने की जरूरत है।