Shrimad Bhagwat Katha organized at Parmarth Niketan

परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में श्रीमद् भागवत कथा का दिव्य आयोजन गायत्री ग्रुप पुणे द्वारा किया गया, जिसमें महाराष्ट्र के सैकड़ों भक्तों ने सहभाग किया। श्रीमद् भागवत कथा की अमृत वर्षा आचार्य श्री अशोक पारिख जी के मुखारविंद से हो रही है।

परमार्थ निकेतन में श्रीमद् भागवत कथा का शुभारम्भ स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी की पावन सान्निध्य में हुआ।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा में निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त का अद्भुत समन्वय है। इसमें विद्या एवं ज्ञान का अक्षय भण्डार है। इसकी शिक्षायें सभी का कल्याण करने वाली है। यह आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तापों का शमन करने वाली है।

परमार्थ निकेतन ऐसी दिव्य भूमि है जहां पर प्रतिदिन भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों के श्रद्धालु, पर्यटक आकर दिव्य साधना, कथा, मानस कथा, भागवत कथा और भागवत पुराण की गंगा अनवरत प्रवाहित होती है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रीमद् भागवत पुराण का वर्णन करते हुये कहा कि ज्ञान, भक्ति और वैराग्य के संगम का यह महान ग्रन्थ है। प्रथम स्कन्ध मे कुन्ती और भीष्म से ‘भक्ति योग’ के बारे में दिव्य कथा है। द्वितीय स्कन्ध मे ‘योग-धारणा’ अर्थात् प्रभु का स्मरण व ध्यान कैसे करना चाहिये उसके बारे बताया गया है। तृतीय स्कन्ध में ‘कपिल-गीता’ का वर्णन है जिसमे ‘भक्ति का मर्म’ ‘काल की महिमा’ का वर्णन है। चतुर्थ स्कन्ध ‘पुरजनोपाख्यान’ में इन्द्रियों की प्रबलता के बारे मे बताया गया है। पंचम स्कन्ध ‘भरत-चरित्र’ ‘भवाटवी’ प्रसंग का वर्णन किया गया है। षष्ट स्कन्ध में प्रभु के ‘नाम की महिमा’ के सम्बन्ध में ‘अजामिलोपाख्यान’ है, “नारायण कवच” का वर्णन है। सप्तम स्कन्ध मंे ‘प्रहलाद-चरित्र’, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमों के नियम का कैसे पालन करना चाहिये, इसका निरुपण किया गया है। अष्टम स्कन्ध ‘समुद्र मंथन’, ‘मोहिनी अवतार’, वामन अवतार’, के माध्यम से भगवान की भक्ति और लीलाओं का वर्णन है।

नवम स्कन्ध मे ‘सूर्य-वंश’ और चन्द्र-वंश’ की कथाओं के माध्यम से उन राजाओं का वर्णन है जिनकी भक्ति के प्रभाव से भगवान ने उनके वंश मे जन्म लिया। जिसका चरित्र सुनने मात्र से जीव पवित्र हो जाता है और यही इस स्कन्ध का सार है। दशम स्कन्ध को भागवत का ‘हृदय’ दशम स्कन्ध कहा गया है। एकादश स्कन्ध में भगवान ने अपने ही यदुवंश को ऋषियों का श्राप देकर यह बताया की गलती चाहे कोई भी करे, चाहे वह मेरे अपने ही क्यों न हो उसका फल सभी को भोगना पडता है। द्वादश स्कन्ध में ‘नामसंकीर्तन’ की महिमा बतायी गयी है।

स्वामी जी ने कहा कि गंगा जी का पवित्र तट नाम संकीर्तन का तट है। यहां की शान्ति, पवित्रता और दिव्यता को अपने साथ लेकर जायें।

कथा व्यास श्री अशोक पारिख जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन की महिमा अद्भुत है। यह पूज्य संतों की दिव्य भूमि है जहां आते ही अपार शान्ति की अनुभूति होती है। हमारा परम सौभाग्य है कि आज पूज्य स्वामी जी महाराज का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ। उनके दिव्य वचन हम सभी के लिये आशीर्वाद स्वरूप है।