Pujya Swamiji Speaks at “Global Terrorism vs. Humanity, Peace and Possibility” International Conference

‘देश प्रेम प्रथम, देश प्रेम सदैव’

इंटरनेशनल काॅन्फ्रेंस ‘ग्लोबल टेररिज्म वर्सेज़ ह्यूमैनिटी, पीस एंड पाॅसिबिलिटीज’

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, माननीय डा इन्द्रेश कुमार जी, राज्यपाल केरल श्री आरिफ मोहम्मद खान जी, नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री, जनरल वी के सिंह जी, अन्य विशिष्ट वक्ताओं ने सहभाग किया
आतंकवाद सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा

आतंकवाद नहीं अध्यात्मवाद की ओर बढ़े-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

11 दिसम्बर, ऋषिकेश। विश्वग्राम, मुस्लिम राष्ट्रीय मोर्चा और फोरम फार अवेयरनेस आफ नेशनल सोसाइटी के संयुक्त तत्वाधान में दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल काॅन्फ्रेंस ‘ग्लोबल टेररिज्म वर्सेज़ ह्यूमैनिटी, पीस एंड पाॅसिबिलिटीज’ में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, माननीय डा इन्द्रेश कुमार जी, राज्यपाल केरल श्री आरिफ मोहम्मद खान जी, नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह जी, नजमा अख्तर जी, वाइस चांसलर, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, श्री तारिक मंसूर जी, वाइस चांसलर एएमयू, श्री के जी सुरेश जी, वरिष्ठ पत्रकार, कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी अन्य विशिष्ट अतिथियों और वक्ताओं ने सहभाग किया।

सभी विशिष्ट वक्ताओं ने आतंकवाद को मानवता के लिये खतरा बताते हुये अपने विशिष्ट सुझाव और समाधान प्रस्तुत किये।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती कहा कि आतंकवाद से निपटने के लिये एक सुदृढ़ विधायी ढाँचा सृजित करने के साथ युवाओं में मानवीय संस्कारों के बीज रोपित करना अत्यंत आवश्यक है ताकि मानवाधिकारों और संवैधानिक मूल्यों को सुरक्षित और सुदृढ़ किया जा सके। आतंकवाद सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा है।

भारत में आतंकवाद से लड़ने के लिये प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में सहानुभूति, दया, करूणा और मैत्री सम्बंध विकसित करना होगा क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा, देश में प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा तथा राष्ट्रीय संसाधनों की सुरक्षा का मामला है। अतः सभी को मिलकर न केवल अपने राष्ट्र के लिये बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सुरक्षित वातावरण का सृजन करना होगा।

स्वामी जी ने कहा कि युवाओं को प्रशिक्षित करना होगा कि भले ही हमारे धर्म अलग-अलग है, अलग-अलग भाषाऐं है, हमारी त्वचा का रंग भी अलग हो सकता है, लेकिन हम सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं। एकम् एव अद्वितीयं ब्रह्म। अर्थात ईश्वर एक ही है, एक नूर ते सब जग उपजिया कौन भले कौन मंदे, सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के दिव्य मंत्रों से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शान्ति की स्थापना की प्रार्थना की। जब हम शान्ति की बात करते हैं तो शान्ति से तात्पर्य केवल युद्ध विराम से ही नहीं बल्कि हमारे आन्तरिक द्वंद का शमन से भी है। आन्तरिक शान्ति ही वास्तविक शान्ति का स्रोत है इसलिये आतंकवाद नहीं अध्यात्मवाद की ओर बढ़े।