Ganga Saptami

Ganga Saptami…the day that Mother Ganga descended from the heavenly world to save the lives of the ancestors of King Bhagiratha and, in the present day, to provide life and livelihood to millions of people – in fact, to the 40% of the population of India that is dependent upon Her. To honour Maa on this auspicious day, HH Pujya Swami Chidanand Saraswatiji – Muniji anointed her in a beautiful ceremony with the Parmarth Gurukul Rishikumars in His jhopri, afterwards sharing that “Until now, Maa Ganga has been rejuvenating human beings and giving them life. But, now, there is a need for the rejuvenation of Ganga, because our religious and social traditions have started increasing pollution in Her divine waters. The cremation of bodies on Her banks produces partially-burnt bodies, which are entering the river, polluting and adversely affecting the quality of water. All of the glory of our faith…all of the tourism is due to Maa Ganga so, to keep Her alive and vibrant, water consciousness must become public consciousness, and water movement must become mass movement so that the divinity of Mother Ganga may live forever!”

माँ गंगा के अवतरण दिवस गंगा सप्तमी की शुभकामनायें
आईये मिलकर माँ गंगा की दिव्यता को चिरस्थायी बनाये रखने का संकल्प लें
‘ जल आंदोलन बने जन आंदोलन-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

18 मई, ऋषिकेश। वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को माँ गंगा स्वर्ग लोक से शिवजी की जटाओं से होती हुई धरती पर अवतरित हुई थीं, इसलिये आज के दिन को माँ गंगा के ‘अवतरण दिवस गंगा सप्तमी’ के रूप में मनाया जाता है। माँ गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है जिसेे जाह्नवी, गंगे, शुभ्रा, सप्तेश्वरी, भागीरथी और विष्णुपदी सहित कई नामों से जाना जाता है।

आज गंगा सप्तमी के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने सात्विक गंगा स्नान कर माँ गंगा का अभिषेक किया। उन्होंने कहा कि गंगा एक नदी नहीं बल्कि हम भारतीयों की ‘माँ’ है। माँ गंगा एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पातल लोक से होकर बहती है। तीनों लोकों की यात्रा करने वालों को त्रिपथगा से संबोधित किया जाता है।

राजा भगीरथ जो कि इक्ष्वाकु वंश के एक महान राजा थे उन्होंने कठोर तपस्या कर माँ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अपने पूर्वजों को निर्वाण प्रदान कराने हेतु घोर तप किया था। राजा भगीरथ की वर्षों की तपस्या के बाद, माँ गंगा भगवान शिव की जटाओं से होती हुईं पृथ्वी पर अवतरित हुईं। पृथ्वी पर जिस स्थान पर माँ गंगा अवतरित हुई वह पवित्र उद्गम स्थान गंगोत्री है। माँ गंगा ने न केवल राजा भागीरथ के पूर्वजों के उद्धार किया बल्कि तब से लेकर आज तक वह लाखों-लाखों लोगों को ‘जीवन और जीविका’ प्रदान कर रही हैं तथा भारत की लगभग 40 प्रतिशत आबादी गंगा जल पर आश्रित हैं।

हरिद्वार में लगने वाला विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला ‘कुंभ’ भी माँ के पावन तट पर आयोजित होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा के जल में डुबकी लगाने के लिये एकत्र होते हंै। पवित्र गंगा में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता हैं। माँ गंगा को स्पर्श करने मात्र जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है इसलिए मृतकों की राख को उनके परिवार जन पवित्र गंगा जल में विसर्जित करते हैं परन्तु अब तो गंगा के तटों पर शवों का अंतिम संस्कार, आंशिक रूप से जले हुए शव और वर्तमान समय में तो सीधे जल समाधि दी जा रही हैं तथा शवों को गंगा में बहाया जा रहा है जिससे जल प्रदूषित हो रहा है और जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा हैं। जिससे जलीय जीवन के साथ-साथ मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़सकता है, इसे तत्काल सरकार और समाज द्वारा रोका जाना चाहिये।

स्वामी जी ने कहा कि अभी तक माँ गंगा मनुष्यों का कायाकल्प और उन्हें जीवन प्रदान करती आ रही हैं परन्तु अब गंगा के कायाकल्प की जरूरत है क्योंकि धार्मिक और सामाजिक परम्परायें, धार्मिक आस्था और सामाजिक मान्यताओं के कारण माँ गंगा में प्रदूषण बढ़ाने लगा हैं।

गंगोत्री, ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद और वाराणसी जैसे प्रमुख स्थल हैं जिनका माँ गंगा के कारण ही अत्यधिक धार्मिक महत्व है। हरिद्वार को तो स्वर्ग का प्रवेश द्वार कहा जाता है ये सब महिमा और पर्यटन गंगा के कारण है इसलिये सिकुड़ती और प्रदूषित होती गंगा को जीवंत बनाये रखने के लिये ‘जल चेतना को जन चेतना’ एवं ‘जल आंदोलन को जन आंदोलन’ बनाना होगा ताकि पवित्र नदी माँ गंगा की दिव्यता चिरस्थायी रह सके।

परमार्थ निकेतन आश्रम परम्परा के पूज्य संत स्वामी सदानन्द जी महाराज की पुण्यतिथि पर परमार्थ निकेतन के पूज्य संतों और ऋषिकुमारों ने भावाभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की इस अवसर पर सोशल डिसटेंसिंग का पालन करते हुये भण्डारा का आयोजन किया गया।