Amavasya Tithi Blessings

On this Amavasya Tithi, HH Param Pujya Swami Chidanand Saraswatiji shares that Indian culture is a culture of ‘offering, tarpan and surrender’. Our sages and ancestors have an important contribution in the promotion of Triveni of this ‘Arpan, Tarpan and Surrender’. We and our culture are alive today because of our sages and ancestors. And to stay alive and thrive, there is a need to pay special attention to environmental protection along with traditional beliefs, so that along with traditions, the environment can also be protected.”

अमावस्या तिथि पितरों की तृप्ति और शांति की तिथि
भारतीय संस्कृति ’अर्पण, तर्पण और समर्पण’ की संस्कृति
स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 29 जून। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज अमावस्या तिथि के अवसर पर कहा कि भारतीय संस्कृति ’अर्पण, तर्पण और समर्पण’ की संस्कृति है। इस ’अर्पण, तर्पण और समर्पण’ की त्रिवेणी के संवर्द्धन मंे हमारे ऋषियों और पितरों का महत्वपूर्ण योगदान है। हमारे ऋषियों और पितरों की वजह से आज हम और हमारी संस्कृति जीवंत है।

प्राचीन शास्त्रों के अनुसार अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव हैं, इसीलिए पितरों की तृप्ति के लिए इस तिथि का अत्यधिक महत्व है। अमावस्या के दिन पितरों को याद किया जाता है। श्रद्धा भाव से पितरों का श्राद्ध, पूजन, तर्पण और दान कर पुण्य प्राप्त किया जाता है परन्तु अब समय आ गया है कि जब हम पितृ तर्पण करंे तो साथ ही पेड़ अर्पण भी करें। अमावस्या तिथि को खीर अर्पण के साथ और भी बहुत सारी चीजें अर्पित करते हैं, खीर तो अर्पण करंे लेकिन नीर (जल) को बचाने का भी संकल्प लें। ’पितृ तर्पण, पेड़ अर्पण का संकल्प लें’।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भावी पीढ़ी के सतत और सुरक्षित विकास के लिये पारम्परिक मान्यताओं के साथ पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, ताकि परम्पराओं के साथ साथ पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सकें। हमारी संस्कृति सर्वे भवन्तु सुखिनः के सूत्र और मानवीय भावना का संचार करने की संस्कृति है। ऐसे में पृथ्वी पर कम होता जल औेेेेर आॅक्सीजन वर्तमान ही नहीं बल्कि भावी पीढ़ी व सम्पूर्ण मानवता के लिये संकट उत्पन्न कर सकती है।

हमें एक बात याद रखना होगा की जब तक हमारा पर्यावरण सुरक्षित है तभी तक धरती पर मानव का जीवन सम्भव है अतः पर्यावरण की रक्षा के लिये जल, जंगल और जमीन का प्रदूषण मुक्त होना नितांत आवश्यक है। पेड़-पौधों को सुरक्षित कर हम सम्पूर्ण मानवता को सुरक्षित कर सकते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान और भावी पीढ़ी को सुरक्षित एवं स्वस्थ्य रखने के लिये हमें पुनः अर्पण, तर्पण और समर्पण की संस्कृति को जीवन में धारण करना होगा। आईये आज अमावस्या तिथि पर पितरों की याद मंे कम से कम एक पौधा रोपण करने का संकल्प लें। हमारे द्वारा लगाया गया एक पेड़ किसी के लिये आश्रय तो किसी के लिये प्राणवायु आॅक्सीजन और किसी के लिये माँ के आंचल की तरह छाया देने वाला हो सकता है, इससे पितरों को शान्ति व मोक्ष तो प्राप्त होगा ही साथ वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिये एक सुरक्षित वातावरण का निर्माण भी होगा।