Pitru Pasha Blessings

It’s Pitru Paksha, a 16–lunar day period in the Hindu calendar when we pay homage to our ancestors, and today HH Param Pujya Swami Chidanand Saraswatiji pays tribute to all of our ancestors, and shares that “Pitru Paksha is an important part of Indian tradition. For the peace of the departed ancestors, Shradh is performed at a holy place or on the bank of a river and, according to our scriptures, the Shradh performed during Pitru Paksha reaches the ancestors immediately and their soul gets peace, while the ancestors bestow blessings on those who perform the rituals.

“In memory of our ancestors, planting a sapling or donating a sapling means a donation of shelter for someone, a donation of oxygen for life, and a donation of shade – like a mother’s lap – to the ancestors. And, they will be enjoyed, not only in Pitru Paksha but every day. Let us make such a donation on this Pitru Paksha so that the world remembers this mantra ‘Pitr Tarpan and Tree Offering’.”

पितृपक्ष का दिव्य संदेश
भारतीय संस्कृति अर्पण, तर्पण और समर्पण की संस्कृति
पेड़ अर्पण-पितृ तर्पण
स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेेश, 12 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पितृपक्ष के अवसर पर संदेश देते हुये कहा कि श्राद्ध भारत की अर्पण, तर्पण और समर्पण की संस्कृति का संदेश देता है। पितृपक्ष भारतीय परम्परा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिये पवित्र स्थान या नदी के तट पर श्राद्ध किया जाता है। हिंदू धर्म में वैदिक परंपराओं के अनुसार कई रीति-रिवाज, व्रत-त्यौहार व परंपरायें हैं। हमारे शास्त्रों में गर्भधारण से लेकर मृत्योपरांत तक के संस्कारों का उल्लेख है और श्राद्ध कर्म उन्हीं में से एक है। प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इस पखवाडें में अपने-अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने हेतु पूजन कर्म किया जाता है।

हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पितृपक्ष में किया गया श्राद्धकर्म पितरों के पास तुरंत पहुंच जाता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण और मत्स्य पुराण में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि पूर्वजों को अर्पित किए गए अनुष्ठान और भोजन उन तक तुरंत पहुंच जाते हैं तथा अनुष्ठान करने वालों को पूर्वज आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि प्रतिवर्ष सितम्बर के पहले रविवार ग्रैंडपेरेंट्स डे मनाया जाता है। यह दिन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच; दादा-दादी और पोते-पोतियों के बीच एक खूबसूरत और सम्मानजनक संबंध के जश्न के रूप में मनाया जाता है। यह दिन दादा-दादी व परिवार के सदस्यों बीच प्रेम, सम्मान, ज्ञान, संस्कृति और संस्कारों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः युवा पीढ़ियों को ध्यान रखना होगा कि ग्रैंडपेरेंट्स का सम्मान करें और उन्हें अपनत्व का एहसास कराये।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि उन्नत सस्ंकृति एवं सभ्यता के विकास के लिये नितांत आवश्यक है कि समाज के सांस्कारिक पक्ष को समुन्नत, सशक्त एवं सबल बनाये रखा जाये। समाज का विकसित स्वरूप जिसमंें न केवल अतीत की परम्पराओें, संस्कारों, रीति-रिवाजों को समुचित स्थान दिया जाता है अपितु भावी पीढ़ी के सतत अस्तित्व व विकास के लिये नयी पीढ़ी को पारम्परिक मान्यताओं से जोड़ा जाना भी आवश्यक है ताकि परम्पराओं के साथ साथ पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सके।

स्वामी जी ने कहा कि भारतीय परम्परा में ’’वसुधैव कुटुम्बकम् एवं सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना निहित है। हमारी संस्कृति ’अर्पण, तर्पण और समर्पण’ की संस्कृति है। इस ’अर्पण, तर्पण और समर्पण’ की त्रिवेणी मंे ़़़़ऋषियों का बहुत बड़ा योगदान है। हमारे ऋषियों ने समाज की उन्नति के लिये स्वयं को समर्पित किया। जिनकी वजह से आज हम और हमारी संस्कृति जीवंत है। पितृपक्ष के श्रेष्ठ अवसर पर हम दोनांे पीढ़ियों के लिये कुछ ऐसा करें जो पितरों और भावी पीढ़ियों दोनों के लिये श्रेयकर हो।

स्वामी जी ने कहा कि पितरों की याद मंे पौधा रोपण या पौधा दान अर्थात किसी के लिये आश्रय का दान, किसी के लिये प्राणवायु आॅक्सीजन का दान और किसी के लिये माँ के आंचल की तरह छाया का दान होगा, इससे पितरों को शान्ति व मोक्ष भी प्राप्त होगा, वह भी केवल पितृपक्ष में ही नहीं बल्कि प्रतिदिन। आईये इस पितृपक्ष पर ऐसा दान दें कि दुनिया याद रखे और याद रहे यह मंत्र ’पितृ तर्पण और पेड़ अर्पण’।